प्रदुषण -विकराल होती समस्या पर चिंतन
प्रदुषण नियंत्रण के लिए हो रहे प्रयास नाकाफी हैं। आम लोगों और सरकारों की ओर से भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है जीवन यापन के लिए आवशयक जलवायु के दो मुख्य अवयव हैं, जल और वायु। परन्तु ये दोनों ही इतने प्रदूषित हो चुके हैं की शनैः शनैः हमारे जीवन को विपरीत रूप से प्रभावित कर रहे हैं। वर्तमान में हम अपनी राजधानी दिल्ली का उदाहर ले सकते हैं की वहां किस तरह से जन जीवन प्रभावित हो रहा है प्रदूषण नामका राक्षस के कारण। जल और वायु के प्रदूषित होने में जल अथवा वायु का कोई दोष नहीं है। इसके लिए पूरा समाज और इसमें रहने वाले लोग जिम्मेवार हैं। हमने अपने अपने हिस्से की जिम्मेवारी नहीं निभाई है।
अब प्रश्न है की इस समस्या का निदान कैसे हो। इसके निदान हेतु हम सबने अपने स्तर पर कुछ न कुछ प्रयास करने होंगे। जो जितना कर सकते हैं प्रदूषण को कम करने के लिए उतना करें। कोई पेड़ लगा सकता है, कोई पेट्रोलियम पदार्थो की खपत को कम कर सकता है, कोई बिजली के दुरूपयोग को कम करे आदि आदि। इसी क्रम में मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ। हम सभी देशवासी अपने भावी पीढ़ी के अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी अपनी आमदनी में से कुछ उपकर जल और वायु की रक्षा के लिए सरकार के मांगने या अनिवार्य करने से पहले स्वयं देने का प्रस्ताव रखें ताकि सरकार कोई व्यवस्था करे, कोई ढांचा विकसित किया जाये जिससे हम विकराल होती इस समस्या से खुद को और आनेवाली पीढ़ी को सुरक्षति कर सकने के उपाय की ओर अग्रसर हों। यह नए भारत की परंपरा में एक नवाचार होगा। आज नहीं तो कल ऐसा करना ही होगा, बेहतर है जल्दी कुछ किया जाये। जितनी जल्दी करेंगे उतना अधिक हम जीवन को प्रदूषण के कुप्रभाव से बचा पाएंगे। हम पृथ्वी पर पीढ़ियों से निवास करते आ रहे हैं कुछ तो समुचित किराया देना चाहिए हमें। इसको सुरक्षित अपने आने वाली पीढ़ी को सौंपना हमारी जिमेवारी है।
बातें बहुत हो चुकी हैं समस्या के दीर्घकालिक निदान हेतु कारगर काम करना होगा तभी प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है।