NCERT Class 9 History Solutions Hindi Medium Chapter-1 फ्रांसीसी क्रांति The French Revolution

NCERT Class 9 History Solutions Hindi Medium Chapter-1

फ्रांसीसी क्रांति

(The French Revolution)

Solutions Hindi Medium Chapter-1 फ्रांसीसी क्रांति Question Answer .Complete chapter solutions Hindi Medium.

Solutions Hindi Medium Chapter-1 फ्रांसीसी क्रांति question answer

पाठ्यपुस्तक से

प्रश्न 1. फ्रांस में क्रांतिकारी विरोध की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर :निम्नलिखित परिस्थितियों मे फ़्रांस मे क्रांतिकारी विरोध की शुरुआत हुई । 

  सामाजिक असमानता 
          जीविका संकट 
          आर्थिक समस्या 
          मजबूत मध्यम वर्ग
          राजनैतिक कारण
सम्राट लुई का भ्रष्ट प्रसाशन तंत्र 

      

  • सामाजिक असमानता  : अठारहवीं शताब्दी मे फ़्रांस मे सामंतवाद की प्रथा थी । फ़्रांस का समाज तीन वर्गों (एस्टेट)में बांटा था : प्रथम वर्ग, द्वितीय वर्ग एवं तृतीय वर्ग।
    प्रथम एस्टेट में पादरी आते थे। दूसरे एस्टेट में कुलीन और  तृतीय एस्टेट में व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, वकील, किसान, कारीगर, भूमिहीन मजदूर एवं नौकर आते  थे।
    इन सब मे से सिर्फ तृतीय एस्टेट ही  सभी प्रकार के कर पड़ते थे । पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों को सरकार को कर देने से छूट प्राप्त थी। सरकार को कर देने के साथ-साथ किसानों को चर्च को भी कर देना पड़ता था। यह एक अन्यायपूर्ण स्थिति थी जिसने तृतीय एस्टेट के सदस्यों में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया।
  • जीविका संकट : फ़्रांस की जनसंख्या अठारहवीं शताब्दी मे 2.3 करोड़ से बढ़ाकर 2.8 करोड़ हो गई । इस कारण अनाज की उत्पादन की तुलना मे उसकी मांग काफी तेजी से बढ़ा । अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य – पवरोटी की कीमत मे तेजी से वृद्धि हुई लेकिन लोगों की मजदूरी इसकी तुलना मे काफी कम  थी और वो बढ़ नहीं रही थी । इसकी वजह से रोजी रोटी का संकट हो गया ।
  • आर्थिक परिस्थितियाँ : लंबे समय से चल रहे युद्ध के कारण फ़्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे । अपने नियमित खर्च जैसे  सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने आदि के लिए फ़्रांस की सरकार को कर बढ़ाना पड़ा।
    इससे लोगों मे असंतोष की भावना बढ़ी ।
  • मजबूत मध्यम वर्ग : अठारहवीं सदी के दौरान मध्यम वर्ग शिक्षित एवं धनी बन कर उभर रहा था । मध्यम वर्ग के लोगों का मानना था कि किसी भी खास तबके को जन्म के आधार पर विशेष अधिकार नहीं मिलना  चाहिए । शिक्षित होने के कारण इस वर्ग के सदस्य फ्रांसीसी एवं अंग्रेज राजनैतिक एवं सामाजिक दार्शनिकों द्वारा सुझाए गए समानता एवं आजादी के विचारों से अवगत हो चुके थे। ये विचार सैलून एवं कॉफी-घरों में जनसाधारण के बीच चर्चा के विषय बन गए और  पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा इनका प्रचार प्रसार हुआ । दार्शनिकों के विचारों ने इस क्रांति मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • राजनैतिक कारण: तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधियों ने मिराब्यो एवं आबे सिए के नेतृत्व में स्वयं को
    राष्ट्रीय सभा घोषित कर दिया एवं शपथ ली कि जब तक वे सम्राट की शक्तियों को सीमित करने व अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों वाली सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने वाला संविधान नहीं बनाएँगे तब तक सभा को भंग नहीं करेंगे। जिस समय राष्ट्रीय सभा संविधान का मसौदा बनाने में व्यस्त थी, उस दौरान सामंतों को विस्थापित करने के लिए बहुत से स्थानीय विद्रोह हुए। इसी बीच, खाद्य संकट गहरा गया तथा जनसाधारण का गुस्सा गलियों में फूट पड़ा। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ हुआ।
  • सम्राट लुई का भ्रष्ट प्रसाशन तंत्र : सम्राट लुई सोलहवें के शासन मे  उच्च पद आमतौर पर बेचे जाते थे। पूरा प्रशासन भ्रष्ट था और प्रत्येक विभाग के अपने ही कानून थे। किसी एक समान प्रणाली के अभाव में चारों ओर भ्रम का वातावरण था। लोग प्रशासन की इस दूषित प्रणाली से तंग आ चुके थे तथा इसे बदलना चाहते थे।

प्रश्न 2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को  क्रांति का फायदा मिला  ? कौन से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए  ? क्रांति के नतीजों से  समाज के किन समूहों को निराशा  हुई होगी ?

उत्तर : तृतीय एस्टेट्स के अमीर तबके को  क्रांति से सर्वाधिक लाभ हुआ। इन समूहों में किसान, मजदूर, छोटे अधिकारीगण, वकील, अध्यापक, डॉक्टर एवं व्यवसायी शामिल थे। पहले इन्हें सभी कर अदा करने पड़ते थे व पादरियों एवं कुलीन लोगों द्वारा उन्हें हर कदम पर सदैव अपमानित किया जाता था किन्तु क्रांति के बाद उनके साथ समाज के उच्च वर्ग के समान व्यवहार किया जाने लगा। प्रथम एस्टेट्स के लोगों अर्थात  पादरियों एवं द्वितीय एस्टेट्स के लोगों अर्थात कुलीनों को सत्ता  त्यागने पर बाध्य होना पड़ा तथा उनसे सभी विशेषाधिकार छीन लिए गए। समाज के अपेक्षाकृत निर्धन वर्गों तथा महिलाओं को क्रांति के परिणाम से निराशा हुई होगी क्योंकि क्रांति के बाद समानता की प्रतिज्ञा पूर्ण रूप से फलीभूत नहीं हुई।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं व बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ़्रांसीसी क्रांति कौन सी विरासत छोड़ गई ?
उत्तर : फ्रांसीसी क्रांति से उन्नीसवीं व बीसवीं सदी के विश्व के लोगों को मिली विरासत :

फ़्रांस की क्रांति केवल फ़्रांस ही नहीं अपितु दुनिया के अन्य हिस्से के लोगों के लिए भी कई महत्वपूर्ण परिणाम लेकर आया –

(क) यह पहला ऐसा राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने आजादी, समानता और भाईचारे जैसे विचारों को अपनाया। उन्नीसवीं व बीसवीं सदी के प्रत्येक देश के लोगों के लिए ये विचार आधारभूत सिद्धांत बन गए।
(ख) फ़्रांस की क्रांति ने यूरोप के लगभग सभी देशों एवं दक्षिण तथा मध्य अमेरिका में सभी  क्रांतिकारी आंदोलनों  को प्रेरित किया।
(ग) यूरोप के विभिन्न स्थानों पर घटित सामाजिक एवं राजनैतिक बदलाव की शुरुआत हुई ।
(घ) इस क्रांति ने ‘राष्ट्र ‘ शब्द को एक आधुनिक अर्थ दिया । राष्ट्र वह क्षेत्र नहीं जिसमे संबंधित लोग रहते हैं बल्कि लोग स्वयं हैं ।
(ङ) इसने मनमाने तरीके से चल रहे शासन का अंत किया तथा यूरोप एवं विश्व के अन्य भागों में लोगों के गणतंत्र के विचार का विकास किया।
(च) इसने सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार की अवधारणा का प्रचार किया जो बाद में कानून के समक्ष लोगों की समानता की धारणा बनी।
(छ) इसने  राष्ट्रवादी’ की अवधारणा को बढ़ावा दिया जिसने पोलैण्ड, जर्मनी, नीदरलैण्ड तथा इटली में लोगों को अपने देशों में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हेतु प्रेरित किया।
(ज) इस क्रांति ने स्वतंत्रता के आदर्श को प्रेरित किया जो संप्रभुता का आधार बना ।
(झ) इसने विश्व मे सामाजिक समानता की अवधारणा दी ।

इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का सबसे बड़ा प्रभाव विश्व भर में जन-आन्दोलनों का प्रारंभ तथा लोगों में राष्ट्रवाद की भावना के उदय होना था।

प्रश्न 4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति मे  है।
उत्तर : वे जनवादी अधिकार जो आज हमे मिले हुए हैं तथा जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति से हुआ है, इस प्रकार हैं:

(क) समानता का अधिकार
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार
(ग) विचार की अभिव्यक्ति का अधिकार
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(ङ) न्याय का अधिकार
(च) एकत्र होने तथा संगठन बनाने का अधिकार

प्रश्न 5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश मे नाना अंतर्विरोध थे?
उत्तर : हाँ, सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश मे नाना अंतर्विरोध थे –

महिलाओं को मताधिकार नहीं दिया गया । संपत्ति नहीं रखने वाले नागरिक भी इस अधिकार से वंचित थे । केवल करदाताओं के उच्चतम वर्ग को ही वोट देने का अधिकार दिया गया था । लगभग 30 लाख ऐसे लोग जो पर्याप्त कर देने मे असमर्थ थे या जिनकी आयु 25 वर्ष से कम थी  तथा महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया ।

अतः इन सार्वभौमिक अधिकारों से गरीबों को दबा दिया गया । संविधान केवल अमीरों के लिए उपलब्ध रह गया । महिलाओं को इनसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ ।

फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक दासप्रथा भी  जारी रही।

प्रश्न 6. नेपोलियन के उदय का आप कैसे वर्णन करेंगे ?
उत्तर: सन् 1792 मे फ़्रांस के गणतंत्र बनने के बाद वहाँ के तत्कालीन शासक रोबेस्पेयर ने नियंत्रण तथा दंड की सख्त नीति अपनाई । वह भी एक अनियंत्रित शासक बन चुका था । परिणामस्वरूप अगले कुछ सालों मे एक आतंक का राज स्थापित हो गया ।

रोबेस्पेयर का शासन खत्म होने के बाद, सारी शक्तियां किसी एक व्यक्ति के हाथ मे जाने से बचाने के लिए 5 सदस्यों वाली एक कार्यपालिका – डायरेक्टरी को परिषद द्वारा नियुक्त किया गया ।

लेकिन , डायरेक्टरों का झगड़ा अक्सर विधान परिषदों से होता और तब परिषद उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करती । डायरेक्टरी राजनीतिक रूप से अस्थिर थी । डायरेक्टरी की अत्यधिक अस्थिरता ने नेपोलियन बोनापार्ट के एक सैन्य तानाशाह के रूप मे उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया ।

सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर  दिया। वह पड़ोसी यूरोपीय देशों पर विजय करने निकल पड़ा, राजवंशों को हटाया और नए साम्राज्यों को जन्म दिया। जिसमें उसने अपने परिवार के सदस्यों को आरूढ़ किया।

उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा जैसे कई कानून बनाए और दशमलव प्रणाली पर आधारित नाप-तौल की एक समान पद्धति शुरू की।

अंततः 1815 ई0 में वाटरलू में उसकी हार हुई।

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